लैंगिक संवेदनशीलता



लैंगिक संवेदनशीलता,
कहते हैं इसको समझदारी की विशेषता
सबको समझना एक समान , क्या कर नहीं सकते दम इसकी चेष्टा?

कहते हैं इसको प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया,
जिसके माध्यम से व्यवहार संशोधन की मिलती है प्रतिक्रिया,

आवश्यक है खत्म करना, लैंगिक ताईद की यह पहचान,
स्त्री हो या पुरुष, करना चाहिए दोनों का सम्मान,

यह और कुछ नहीं बस है लोगों की दकियानूसी सोच,
पर क्यों बना बैठे हम इसको मन का संकोच ?

आओ, करें परिवर्तन, जो है संसार का नियम,
लड़‌का हो या लड़‌की कोई नहीं है किसे से कम.
निकाल फेंके यह मन का भ्रम.

इस बात को समझें,
कि परंपरा ही लाचार है,
बात और कुछ नहीं, हमारा समाज ही बीमार है

कर बैठते हैं आम तौर पर इसका एक मजाक,
पर यह नहीं सोचते कि कितने‌ खिन्न होते हैं किसे के जज़्बात,

इस समस्या से निकलने का ढूंढे कोई समाधान,
महिलाओं और पुरुषों के समान वेतन सुनिश्चत करने पर देना होगा हमें ध्यान,

पढ़े ! लिखें। जागरूक बनें
यही हमारा तमाम सम्मिलित योगदान!

Gursimrat Kaur

POETICS

Collection of poems in English and Punjabi